विकास के सहारे होगी योगी की परीक्षा

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाये जाने की आवाज़ उनके समर्थकों की तरफ से भले ही उठती रही थी किन्तु किसी को अंदाज़ा नहीं था कि भाजपा आलाकमान उनके नाम पर अपनी स्वीकृति देगा. योगी आदित्यनाथ का नाम बतौर मुख्यमंत्री घोषित होना अपने आपमें चौंकाने वाला निर्णय ही कहा जायेगा. इसके पीछे मूल कारण केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सबका साथ, सबका विकास की राजनीति का होना है. उनकी सर्वहितकारी राजनीति के चलते अनुमान लगाया जाना कठिन था कि योगी जैसे कट्टर हिंदुत्व छवि और विवादित बयान देने वाले व्यक्ति को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी जाएगी. एक ऐसे समय में जबकि ठीक दो वर्ष बाद केंद्र सरकार को या कहें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सम्पूर्ण देश के सामने लोकसभा चुनाव की परीक्षा से गुजरना है, उत्तर प्रदेश में कट्टर हिंदुत्व छवि का मुख्यमंत्री बनाया जाना अपने आपमें एक चुनौती ही कहा जायेगा. मोदी के सामने ये चुनौती इस कारण और बड़ी है क्योंकि विगत डेढ़ दशक से अयोध्या राम मंदिर मामला जिस तरह से अपनी उपस्थिति राजनैतिक और सामाजिक हलकों में बनाये हुए है उसके फिर से तेजी से उभरने की आशंका बनती दिखाई दे रही है. राम मंदिर समर्थकों में, मोदी-योगी के समर्थकों में, हिंदुत्व के पक्षधर लोगों में अब आशा की किरण का संचार हुआ है कि केंद्र और प्रदेश में भाजपा की बहुमत की सरकार होने के कारण राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़ होगा. इसके उलट देखा जाये तो मोदी की राजनीति पूरी तरह से समेकित विकास की, समावेशी विकास की तरफ बढती दिखती है. ऐसे में योगी का मुख्यमंत्री बनना संकेत करता है कि वे उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व की अवधारणा को विकास के साथ समन्वित करके आगे बढ़ना चाहते हैं. विगत कुछ दशकों में नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से अपनी राजनैतिक कुशलता को प्रदर्शित किया है उसे देखने के बाद लगता नहीं कि यह निर्णय उन्होंने किसी दवाब में, किसी जल्दबाजी में या फिर महज हिंदुत्व अवधारणा के कारण लिया है. यह तो स्पष्ट है कि 2014 के लोकसभा चुनाव रहे हों या फिर उत्तर प्रदेश के वर्तमान चुनाव, मतदाताओं का ध्रुवीकरण अवश्य ही हुआ है. इस ध्रुवीकरण के चलते भाजपा को अन्य धर्मों, जातियों, वर्गों के साथ-साथ हिन्दुओं का संगठित मत प्राप्त हुआ है. इसके चलते हिन्दू वर्ग को संतुष्ट करना, उसकी भावना का सम्मान करना अवश्य ही मोदी की मजबूरी हो सकती थी.


अब जबकि योगी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले चुके हैं तब उन्हें और उनके मंत्रिमंडल को ये समझना होगा कि उनके पास मात्र दो वर्ष का ही समय है. ठीक दो वर्ष बाद 2019 में मोदी लोकसभा चुनाव में अपनी परीक्षा देंगे और उनकी वो परीक्षा इस मायने में और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि उनका निर्वाचन क्षेत्र इसी उत्तर प्रदेश में है. जिस तरह से विगत पंद्रह वर्षों से भाजपा प्रदेश सरकार से बाहर रही है और चक्रानुक्रम में जिस तरह से दो क्षेत्रीय दलों ने अपनी सरकार बनाकर क्षेत्रीयता, जातीयता, वर्गवाद, परिवारवाद को बढ़ावा दिया है उसने प्रदेश के विकास-क्रम को बाधित किया है. सड़कों, पार्कों, गलियारों, एक्सप्रेस वे आदि के द्वारा एक निश्चित क्षेत्र में विकास को सम्पूर्ण विकास का सूचक नहीं मन जा सकता है. प्रदेश का सर्वांगीण विकास करने का दावा करने वाली सरकार ने पूर्वांचल की तरफ, बुन्देलखण्ड की तरफ उस दृष्टि से नहीं देखा जिस विकास दृष्टि से वे अपने-अपने क्षेत्र को देखती रही हैं. ऐसे में योगी के साथ-साथ मोदी के सामने भी ये चुनौती रहेगी कि इन्हीं दो वर्षों में प्रदेश के विकास का एक मॉडल मतदाताओं के सामने रखना होगा.

वर्तमान विधानसभा चुनाव में जिस तरह से मोदी ने, भाजपा ने अपने लोककल्याण संकल्प-पत्र के द्वारा जनता के सामने वादे किये थे उसे जनता ने मोदी की विकासछवि को देखते हुए प्रचंड बहुमत प्रदान किया. इस बहुमत में न केवल हिन्दू वर्ग का मतदाता शामिल है वरन अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों का भी मत शामिल है. ऐसे में मोदी और योगी दोनों के सामने मुस्लिम समुदाय के भीतर जबरिया भर दिए गए भय को दूर करना भी है. देश-प्रदेश की राजनीति में विगत कई दशकों से मुसलमानों को जिस तरह से वोट-बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है, उनको हिंदुत्व का भय दिखाकर ध्रुवीकरण किया जाता रहा है, सुविधाओं-सब्सिडी के नाम पर जिस तरह से वरीयता दी जाती रही है, राजनैतिक लाभ के लिए जिस तरह से उनका तुष्टिकरण किया जाता रहा है उसने भी मुस्लिम समुदाय की दृष्टि में भाजपा को, मोदी को, योगी को अछूत बना रखा है. उनके प्रति एक तरह का भय जगा रखा है.


आज जिस तरह का वातावरण योगी को लेकर बनाया जा रहा है ठीक वैसा ही वातावरण लोकसभा चुनाव के पहले मोदी को लेकर बनाया जा रहा था. मोदी की कट्टर छवि को स्वयं मोदी ने आकर तोड़ा है. इसके पीछे उनके कार्यों का प्रभावी होना रहा है. बिना पक्षपात के सबका साथ, सबका विकास की भावना का अन्तर्निहित होना रहा है. योगी को मुस्लिम समुदाय के भीतर बैठे डर को दूर करने के साथ सम्पूर्ण प्रदेश के विकास की राह निर्मित करनी होगी. इसके लिए किसानों के उत्पादों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदना, फसल बीमा की राह आसान करना, नागरिक सुरक्षा, जनकल्याण कार्यों को करना, बुन्देलखण्ड, पूर्वांचल, रुहेलखण्ड आदि पिछड़े क्षेत्रों के विकास हेतु अलग से कोई मॉडल बनाना आदि कार्यों को अंजाम देना होगा. जिस तरह के विकासकार्यों को प्रधानमंत्री मोदी आगे ला रहे हैं उसे फलीभूत होने का अवसर तभी मिल सकेगा जबकि 2019 के लोसभा चुनावों में मोदी पुनः केंद्र की सत्ता प्राप्त करें. और इसके लिए उत्तर प्रदेश महती भूमिका में रहेगा. इसलिए विगत वर्षों में जिस तरह का अनियमित, अनियंत्रित विकास देखने में आया है उसको नियमित करना होगा. गुंडाराज की स्थिति के चलते जिस तरह कानून व्यवस्था ध्वस्त हुई है उसे सुधारना होगा. जाति-धर्म विशेष के चलते होते आये छोटे-बड़े उपद्रवों के चलते जिस तरह आमजन में भय, असुरक्षा का माहौल बना हुआ है उसे दूर करना वर्तमान प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए. योगी और उनकी कट्टर हिंदूवादी छवि को पसंद करने वाले समर्थकों को एक बात याद रखनी होगी कि विवादित बयानों के चलते एकबारगी किसी की भी छवि एक वर्ग विशेष में स्थापित भले ही हो जाये किन्तु उस छवि को दीर्घकालिक रूप से स्थापित करने के लिए उसे विकास की राह चलना ही होता है. यदि योगी सरकार मोदी सरकार की तर्ज़ पर विकास की राह चल पड़ती है तो प्रदेश की जनता को उनकी सकारात्मक छवि बनाते देर नहीं लगेगी. अब देखना ये है कि योगी किस तरह से और कितना मोदी की समग्र विकासनीति वाली छवि का लाभ उठाते हैं. 

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